भारत की राष्ट्रपति, श्रीमती द्रौपदी मुर्मु का संविधान दिवस के अवसर पर सम्बोधन

संविधान दिवस के पावन अवसर पर आप सभी के बीच आकर मुझे हार्दिक प्रसन्नता हो रही है। संविधान हमारे देश का सबसे पवित्र ग्रंथ है।
संविधान दिवस के पावन अवसर पर आप सभी के बीच आकर मुझे हार्दिक प्रसन्नता हो रही है। संविधान हमारे देश का सबसे पवित्र ग्रंथ है।
मैं आज विमोचित किए गए इन प्रकाशनों को तैयार करने में प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप से योगदान देने वाले सभी महानुभावों को बधाई देती हूँ।
मैं आज भारतीय नौसेना की पश्चिमी नौसेना कमान के 'धवल वर्दीधारी जवानों' से मिलकर प्रसन्नता का अनुभव कर रही हूँ। मैं भारत की समुद्री सीमाओं की रक्षा के लिए प्रतिबद्ध हमारी नौसेना के जोशीले और ऊर्जावान योद्धाओं को देखकर अत्यंत प्रभावित हूँ।
मेरे प्यारे देशवासियो,
नमस्कार!
जोहार!
सभी देशवासियों को मैं ‘जनजातीय गौरव दिवस’ की बधाई देती हूं। हम सब, ‘धरती आबा’ भगवान बिरसा मुंडा की 150वीं जयंती के साल भर चलने वाले उत्सव का शुभारंभ कर रहे हैं। सभी देशवासियों की ओर से, मैं भगवान बिरसा मुंडा की पावन स्मृति को सादर नमन करती हूं।
आप सब से मिलकर मैं बहुत प्रसन्न हूँ। मैं, आप सभी को इन प्रतिष्ठित सेवाओं में चयनित होकर आने के लिए बधाई देती हूँ। आप सबको इन दोनों सेवाओं में महत्वपूर्ण जिम्मेदारियाँ संभालनी है। मुझे विश्वास है कि आप अपने कर्तव्यों का पूर्ण समर्पण और उत्कृष्टता से निर्वहन करेंगे। आपके द्वारा लिए गए निर्णयों और कार्यों का देश की अर्थव्य
पहली भारतीय राष्ट्रपति के रूप में "वार्म हार्ट ऑफ अफ्रीका" का दौरा करना मेरे लिए बहुत प्रसन्नता की बात है। मुझे भारत और मलावी के व्यापारिक समुदाय को संबोधित करते हुए खुशी हो रही है।
भारत और मलावी के सौहार्दपूर्ण और मैत्रीपूर्ण द्विपक्षीय संबंध हैं। भारत 1964 में मलावी की आजादी के तुरंत बाद मलावी के साथ राजनयिक संबंध स्थापित करने वाले पहले देशों में से एक था। हालांकि, दोनों देशों के बीच लोगों के बीच संबंध 140 वर्षों से अधिक समय से चले आ रहे हैं। संयोगवश, यह वर्ष दोनों देशों के बीच राजनयिक संबंधों की स्थापना का 60वां वर्ष भी है।
यह वास्तव में बहुत प्रसन्नता की बात है कि मुझे एशियाई सर्वोच्च ऑडिट संस्थान संगठन के प्रतिष्ठित प्रतिनिधियों की इस सभा को संबोधित करने का अवसर मिला है, जिसे असोसाई भी कहा जाता है। मैं, आप सबका हार्दिक स्वागत करती हूं।
आप सभी जवानों और अधिकारियों से यहां आकर मिलने की मेरी इच्छा आज पूरी हो रही है। मैं आप सबसे मिलकर बेहद खुशी का अनुभव कर रही हूं।
आज हम सब राष्ट्रपति निलयम में देश की समृद्ध संस्कृति और ‘विविधता में एकता’ का उत्सव मना रहे हैं। हम यहां पूर्वोत्तर भारत की अनूठी कला-संस्कृति को जीवंत रूप में देख रहे हैं। मुझे यहां के pavilions में उत्कृष्ट हस्तशिल्प, हथकरघा और अन्य कलाओं का प्रदर्शन देखने को मिला। पूर्वोत्तर के GI उत्पादों से लेकर असम के माजुली मास्क, त्रिपुरा के रिगनाई कपड़ा, अरुणाचल प्रदेश के मोंपा वस्त्र और मिजोरम के पुंचेई कपड़ा, प्रत्येक उत्पाद अपने आप में अनूठा है। नागालैंड के कारीगरों द्वारा नेटल यार्न की hand-spinning, मणिपुर के lotus silk निकालने की प्रक्रिया, मेघालय की खेनेग कढ़ाई और सिक्किम की थंगका पेंटिंग को
सबसे पहले मैं, उन सभी विद्यार्थियों को हार्दिक बधाई देती हूं जिन्हें इस दीक्षांत समारोह में उपाधियां प्रदान की गई हैं।
अपनी असाधारण उपलब्धियों के लिए पदक हासिल करने वाले सभी विद्यार्थियों की प्रसन्नता से मुझे भी आनंद मिलता है।
मैं, विद्यार्थियों को उनके जीवन और करियर में एक प्रमुख उपलब्धि हासिल करने के मुकाम तक पहुँचाने के लिए संकाय-सदस्यों और विश्वविद्यालय की पूरी टीम के योगदान की प्रशंसा करती हूं।
मैं, हमारे ही परिवार-जनों को मिले संतुष्टि के भाव को समझ सकती हूं जिन्होंने छात्रों की हर प्रकार से मदद की है।