भारत की राष्ट्रपति श्रीमती द्रौपदी मुर्मु का पतंजलि विश्वविद्यालय के द्वितीय दीक्षांत समारोह में सम्बोधन (HINDI)
हरिद्वार : 02.11.2025
(143.91 KB)आज उपाधि प्राप्त करने वाले प्रत्येक विद्यार्थी को मेरी हार्दिक बधाई और आशीर्वाद! पदक प्राप्त करने वाले विद्यार्थियों की मैं प्रशंसा करती हूं। विद्यार्थियों के जीवन-निर्माण में सहभागी अध्यापकों और अभिभावकों को मैं बधाई देती हूं। छात्राओं के अभिभावकों की मैं विशेष सराहना करती हूं।
मुझे यह जानकर हार्दिक प्रसन्नता हुई है कि आज उपाधि पाने वाले विद्यार्थियों में 64 प्रतिशत संख्या बेटियों की है। पदक प्राप्त करने वाली बेटियों की संख्या छात्रों की तुलना में चौगुनी है। यहां शिक्षा प्राप्त कर रहे कुल विद्यार्थियों में बेटियों की संख्या 62 प्रतिशत है। यह केवल संख्या नहीं है, यह महिलाओं के नेतृत्व में आगे बढ़ने वाले विकसित भारत का अग्रिम स्वरूप है। साथ ही, यह भारतीय संस्कृति की उस महान परंपरा का विस्तार है जिसमें गार्गी, मैत्रेयी, अपाला और लोपामुद्रा जैसी विदुषी महिलाएं समाज को बौद्धिक और आध्यात्मिक नेतृत्व प्रदान करती थीं। मुझे विश्वास है कि हमारी शिक्षित बेटियां अपनी आंतरिक शक्ति और प्रतिभा से भारत-माता का गौरव बढ़ाएंगी।
देवियो और सज्जनो,
लोक-परंपरा में ‘हरि’-द्वार का यह परम पावन क्षेत्र ‘हर’-द्वार के नाम से भी जाना जाता है। इस परंपरा के अनुसार, यह पवित्र स्थान ‘हरि’ यानी विष्णु के दर्शन का द्वार भी है तथा ‘हर’ यानी शिव के दर्शन का भी द्वार है। ऐसे पवित्र भूखंड में देवी सरस्वती की आराधना करने वाले विद्यार्थी और आचार्य बहुत सौभाग्यशाली हैं।
हिमालय के इस अंचल से अनेक पवित्र नदियां तो निकलती ही हैं, यहां से ज्ञान-गंगा की अनेक धाराएं भी प्रवाहित होती हैं। उनमें इस विश्व-विद्यालय की एक अविरल धारा भी जुड़ गई है।
प्यारे विद्यार्थियो,
भारतीय संस्कृति के अनुसार आधुनिक शिक्षा को प्रोत्साहित करने वाले इस विश्व-विद्यालय में शिक्षा प्राप्त करने का निर्णय आप सबने लिया। इससे, आप सब एक महान सांस्कृतिक परंपरा के संवाहक बने हैं। इसके लिए मैं आप सबकी तथा आप सबके अभिभावकों की सराहना करती हूं।
भारत की महान विभूतियों ने मानव-संस्कृति के निर्माण में अमूल्य योगदान दिया है। मुनियों में श्रेष्ठ, महर्षि पतंजलि ने योग के द्वारा चित्त की, व्याकरण के द्वारा वाणी की तथा आयुर्वेद के द्वारा शरीर की अशुद्धियों को दूर किया। उनको विनीत होकर, करबद्ध प्रणाम करने की हमारी परंपरा है। उनके पवित्र नाम पर स्थापित इस विश्व-विद्यालय के परिसर से मैं महर्षि पतंजलि को सादर प्रणाम करती हूं।
इस विश्व-विद्यालय द्वारा महर्षि पतंजलि की महती परंपरा को आज के समाज के लिए सुलभ कराया जा रहा है। योग एवं आयुर्वेद के प्रचार-प्रसार में इस योगदान की मैं सराहना करती हूं। मुझे बताया गया है कि इस विश्व- विद्यालय द्वारा योग-पद्धति, आयुर्वेद एवं प्राकृतिक चिकित्सा के क्षेत्रों में शिक्षा एवं अनुसंधान को आगे बढ़ाया जा रहा है। यह प्रयास स्वस्थ भारत के निर्माण में सहायक है। इसके लिए मैं आप सबकी सराहना करती हूं।
प्रिय विद्यार्थियो,
आपके विश्व-विद्यालय की भारत-केन्द्रित शिक्षा-दृष्टि के प्रमुख आयामों पर मेरा ध्यान गया जिनसे मैं बहुत प्रभावित हुई हूं। ये आयाम हैं:
विश्व बंधुत्व की भावना,
प्राचीन वैदिक ज्ञान एवं नूतन वैज्ञानिक अनुसंधान का समन्वय, तथा वैश्विक चुनौतियों का समाधान।
आपका विश्व-विद्यालय भारतीय ज्ञान परंपरा को आधुनिक संदर्भों में आगे बढ़ा रहा है। आप सब इस ज्ञान-यज्ञ के गौरवशाली सहयोगी हैं।
वसुधैव कुटुंबकम् का हमारा सांस्कृतिक आदर्श पृथ्वी एवं मानवता के समग्र कल्याण से अनुप्राणित है। आप सबने, इस मनोरम स्थान पर, इस विश्व- विद्यालय के आदर्शों के अनुरूप शिक्षा प्राप्त की है। आप सबने यह अनुभव किया होगा कि पर्यावरण का संरक्षण करना तथा जीवनशैली को प्रकृति के अनुरूप ढालना मानव समुदाय के भविष्य के लिए अनिवार्य है। मुझे विश्वास है कि आप सब जलवायु-परिवर्तन सहित अन्य वैश्विक चुनौतियों का सामना करने में सदैव तत्पर रहेंगे।
इस विश्व-विद्यालय की ध्येय-दृष्टि की अभिव्यक्ति में सभी लोगों के सुखी रहने की कामना की गई है। सर्वमंगल की यह कामना हमारी संस्कृति की पहचान है। इस मंगलकामना से ही समरसता एवं समावेशी विकास का मार्ग प्रशस्त होता है। मुझे विश्वास है कि आप सभी विद्यार्थी समरसता के जीवन-मूल्य को कार्यरूप देंगे।
सदाचार पर आधारित शिक्षा का प्रसार करने के लिए मैं आपके इस विश्व- विद्यालय की सराहना करती हूं।
इस विश्व-विद्यालय द्वारा योग एवं आयुर्वेद के शिक्षण को प्रमुखता दी जाती है। साथ ही, विज्ञान एवं अध्यात्म के समन्वय से शांतिपूर्ण जीवनशैली को अपनाने का मार्गदर्शन दिया जाता है। शिक्षा का यह मार्ग आपके जीवन- निर्माण में सहायक है तथा हमारे पूरे समाज के लिए कल्याणकारी है।
प्रिय विद्यार्थियो,
श्रीमद्भगवद्गीता के एक अध्याय में, भगवान श्रीकृष्ण ने, दैवी सद्गुणों और समृद्धियों के विषय में भी बताया है। उन्होंने दैवी सद्गुणों में ‘स्वाध्याय: तप आर्जवम्’ को शामिल किया है। स्वाध्याय का अर्थ है – निष्ठापूर्वक अध्ययन एवं मनन। तप का अर्थ है – कष्ट सहते हुए भी अपने कर्तव्य का पालन करना। आर्जवम् का अर्थ है – अन्तःकरण एवं आचरण की सरलता। दीक्षांत के बाद भी, स्वाध्याय की प्रक्रिया में आपको आजीवन संलग्न रहना है। तपस्या और सरलता, जीवन को शक्ति देने वाले मूल्य हैं। मैं आशा करती हूं कि आप सभी विद्यार्थी-गण स्वाध्याय, तपस्या एवं सरलता के जीवन-मूल्यों को अपनाकर अपने जीवन को सार्थक बनाएंगे।
मां गंगा के धरती पर अवतरण के इस पावन क्षेत्र में शिक्षा प्राप्त करने वाले आप सभी विद्यार्थियों को भगीरथ की अमर कथा को अपने हृदय में स्थान देना चाहिए। अपनी कठिन तपस्या के द्वारा मां गंगा को धरती पर लाने के अपने संकल्प को उन्होंने सिद्ध किया था। मैं चाहूंगी कि आप सभी विद्यार्थी-गण भगीरथ-प्रयास को अपना आदर्श बनाकर जीवन-निर्माण तथा राष्ट्र-निर्माण से जुड़े अपने संकल्पों को सिद्ध करें।
व्यक्ति-निर्माण से परिवार-निर्माण होता है। परिवार-निर्माण से समाज और राष्ट्र का निर्माण होता है। एक संस्कार-वान व्यक्ति में साहस और शांति का संगम होता है। इस विश्व-विद्यालय ने व्यक्ति-निर्माण से राष्ट्र-निर्माण का मार्ग अपनाया है। इसके लिए, मैं विश्व-विद्यालय से जुड़े सभी लोगों की सराहना करती हूं। मुझे विश्वास है कि इस विश्व-विद्यालय के पूर्व, वर्तमान एवं भावी विद्यार्थी-गण सदाचार के साथ स्वस्थ समाज एवं विकसित भारत के निर्माण में महत्वपूर्ण योगदान देंगे।
एक बार फिर मैं आप सभी विद्यार्थियों को आशीर्वाद देती हूं तथा आप सभी के स्वर्णिम भविष्य के लिए हृदय से मंगलकामना करती हूं।
धन्यवाद!
जय हिन्द!
जय भारत!
