भारत की राष्ट्रपति श्रीमती द्रौपदी मुर्मु का भारतीय कला महोत्सव के द्वितीय संस्करण के उद्घाटन समारोह में सम्बोधन (HINDI)
राष्ट्रपति निलयम, हैदराबाद : 21.11.2025
भारतीय कला महोत्सव के द्वितीय संस्करण के उद्घाटन समारोह में आप सब के बीच उपस्थित होकर मुझे हार्दिक प्रसन्नता हो रही है। इस महोत्सव के प्रथम संस्करण में हम सब पूर्वोत्तर भारत की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत से अवगत हुए थे। इस बार हमें पश्चिमी भारत की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत को देखने और समझने का अवसर मिलेगा। मुझे पूरा विश्वास है कि अगले नौ दिनों तक चलने वाले इस महोत्सव में शामिल होने वाले लोग गुजरात, महाराष्ट्र, राजस्थान, गोवा, दमन और दीव, तथा दादरा और नगर हवेली के हस्तशिल्प, नृत्य, संगीत, साहित्य और व्यंजन के माध्यम से, भारत के पश्चिमी क्षेत्रों की लोक-संस्कृति की झलक देख पाएंगे।
आज मैंने यहां के pavilions में गुजरात की कच्छ बांधनी, राजस्थान की कोटा डोरिया, महाराष्ट्र की पैठणी और गोवा की कुम्बी बुनाई देखी। मुझे कलाकारों से बातचीत करने का अवसर भी मिला। उनके उत्पाद कलाकारों की पीढ़ी-दर-पीढ़ी चली आ रही कौशल की परंपरा का उत्तम उदाहरण हैं। मुझे विश्वास है कि जब लोग इन pavilions में आएंगे एवं विभिन्न राज्यों के सांस्कृतिक प्रस्तुतियों को देखेंगे तब उन्हें यह अहसास होगा कि भारत की कला-परंपरा कितनी समृद्ध है।
देवियो और सज्जनो,
हमारे देशवासी, विशेषकर हमारे युवा, भारत की सभ्यता-संस्कृति के बारे में और अधिक जान-समझ सकें इसके लिए भारत सरकार अनेक कदम उठा रही है। इस दिशा में राष्ट्रपति भवन में भी अनेक प्रयास किए जा रहे हैं। नई दिल्ली में स्थित राष्ट्रपति भवन के साथ-साथ, शिमला, हैदराबाद तथा देहरादून में स्थित राष्ट्रपति आवास, जनता के आगमन के लिए खुले हैं। वहां पर अधिक से अधिक लोग आएं तथा भारत की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत और इतिहास से परिचित हों, इसके लिए विशेष प्रयास किए गए हैं। राष्ट्रपति भवन को मैं जनता का ही भवन मानती हूं। इस सोच के अनुसार राष्ट्रपति भवन को आम जनता से जोड़ने के लिए निरंतर कार्य किया जा रहा है।
इस वर्ष मार्च में, राष्ट्रपति भवन में ‘विविधता का अमृत महोत्सव’ का दूसरा संस्करण आयोजित किया गया था। वह महोत्सव, भारत के दक्षिणी राज्यों पर केंद्रित था। मेरा मानना है कि ऐसे आयोजनों से विभिन्न क्षेत्रों में रहने वाले हमारे देशवासियों को एक-दूसरे को समझने में मदद मिलती है। यह समझ हमारी सोच को विस्तृत बनाती है। साथ ही, ऐसे आयोजनों से हमारी सांस्कृतिक धरोहर का सम्मान बढ़ता है, उनका संरक्षण करने की प्रेरणा मिलती है।
देवियो और सज्जनो,
मुझे यह देखकर खुशी हुई है कि भारतीय कला महोत्सव के इस संस्करण में एक साहित्यिक प्रकोष्ठ भी बनाया गया है। मुझे बताया गया है कि वहाँ युवा लेखन, लोककथाओं, अनुवाद और महिलाओं की अभिव्यक्ति पर चर्चाएं होंगी। किसी क्षेत्र विशेष में प्रचलित भाषा के साहित्य से उस क्षेत्र या भाषा को बोलने वाले समाज के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी मिलती है।
मैं आशा करती हूं कि लोग अधिक से अधिक संख्या में यहां पर आएंगे और देश के पश्चिमी क्षेत्र की कला-संस्कृति, व्यंजन, साहित्य, शिल्प का आनंद लेंगे।
अंत में, यहां आए सभी कलाकारों और शिल्पकारों की मैं सराहना करती हूं। इस आयोजन से जुड़े राष्ट्रपति भवन, संस्कृति मंत्रालय, वस्त्र मंत्रालय तथा पर्यटन मंत्रालय की सभी टीमों की भी मैं सराहना करती हूं। मुझे विश्वास है कि सभी संस्थाओं की तथा आम नागरिकों की भागीदारी से यह महोत्सव सफल होगा।
आप सब के उज्ज्वल भविष्य के लिए मैं शुभकामनाएं देती हूं।
धन्यवाद,
जय हिंद!
जय भारत!
