भारत की राष्ट्रपति श्रीमती द्रौपदी मुर्मु का 71वें राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार समारोह में सम्बोधन
नई दिल्ली, : 23.09.2025

मैं आज के सभी पुरस्कार विजेताओं को हार्दिक बधाई देती हूं। मोहनलाल जी को दादासाहब फाल्के पुरस्कार से सम्मानित किये जाने पर मैं उन्हें हार्दिक बधाई देती हूं। उन्होंने कोमल से कोमलतम और कठोर से कठोरतम भावों को सहजता से प्रस्तुत किया है और The Complete Actor की उनकी छवि बनी है। मुझे यह जानकर सुखद आश्चर्य हुआ है कि उन्होंने महाभारत के चरित्र, कर्ण, पर आधारित एक लंबे संस्कृत नाटक “कर्ण-भारम्” में कर्ण की भूमिका निभाई है। एक तरफ़ उनकी वानप्रस्थम् जैसी गंभीर फ़िल्में हैं तो दूसरी तरफ अनेक अत्यंत लोकप्रिय फ़िल्में हैं। मुझे जानकारी मिली है कि मोहनलाल जी के पुरस्कार की घोषणा होने पर लोगों में ख़ुशी की लहर दौड़ गई। यह इस बात का प्रमाण है कि उन्होंने अनगिनत दर्शकों के दिल में अपनी जगह बनाई है।
देवियो और सज्जनो,
यहां विश्व के सबसे बड़े फिल्म उद्योग के उत्कृष्ट प्रतिनिधि उपस्थित हैं। आप सबसे अधिक प्रभावी और लोकप्रिय कला माध्यम के द्वारा विश्व के सबसे बड़े लोकतन्त्र तथा सबसे अधिक विविधतापूर्ण समाज का परिचय कराते हैं। हम कह सकते हैं कि इस सभागार में, आप सबके जरिए, पूरे भारत का स्वरूप दिखाई दे रहा है।
हर वर्ष, राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार समारोह में आने से पहले मुझमें यह जिज्ञासा भी रहती है और उत्साह भी रहता है कि इतनी मेहनत से जो फिल्में बनाई गई हैं उनमें क्या दिखाया गया है, कैसे दिखाया गया है और किस उद्देश्य से दिखाया गया है। मुझे यह जानकर खुशी होती है कि सिनेमा से जुड़े सभी लोगों में एक भारतीय चेतना है, Indian sensibility है जो सभी स्थानीय संदर्भों को जोड़ती है। जैसे अनेक भाषाओं में भारतीय साहित्य की रचना होती है वैसे ही अनेक भाषाओं, बोलियों, क्षेत्रों और स्थानीय परिवेशों में भारतीय सिनेमा विकसित हो रहा है। हमारी फिल्में स्थानीय होने के साथ-साथ राष्ट्रीय भी हैं।
देवियो और सज्जनो,
महिलाओं पर केन्द्रित अच्छी फिल्में बन रही हैं और पुरस्कृत भी हो रही हैं, यह बहुत अच्छा सामाजिक संकेत है। हम सभी देखते हैं कि महिलाएं किसी न किसी स्तर पर poverty, patriarchy या prejudice से जूझती हैं। आज पुरस्कृत फिल्मों में माताओं द्वारा बच्चों के नैतिक निर्माण की कहानी, सामाजिक रूढ़ियों का सामना करने के लिए महिलाओं का एकजुट होना, घर- परिवार और सामाजिक व्यवस्था की जटिलताओं के बीच महिलाओं की स्थिति तथा patriarchy की विषमताओं के विरुद्ध आवाज उठाने वाली साहसी महिलाओं की कहानियों पर आधारित फिल्में शामिल हैं। मैं देश की सभी बहनों और बेटियों की तरफ से ऐसे संवेदनशील फिल्मकारों को साधुवाद देती हूं।
मैं अपना अनुभव और अनुरोध दोहराती हूं कि जिस तरह शिक्षण संस्थानों के पुरस्कार समारोहों में विजेता बेटियों की संख्या अधिक होने में विकसित भारत की झलक दिखाई देती है वही प्रयास फिल्म पुरस्कारों में भी होना चाहिए। मैं मानती हूं कि समान अवसर मिलने पर महिलाएं असाधारण प्रदर्शन करती हैं। कला और सिनेमा जैसे क्षेत्रों में भी उनकी सहज प्रतिभा के अनेक उदाहरण देखने को मिलते हैं। फिल्म से जुड़ी ऐसी उत्कृष्ट महिला प्रतिभाओं को पर्याप्त मान्यता मिलनी चाहिए। Jury के Central Panel और Regional Panels में भी महिलाओं का समुचित प्रतिनिधित्व होना चाहिए।
इस बात पर जितना भी जोर दिया जाए वह कम है कि सिनेमा केवल उद्योग नहीं है, वह समाज और देश को जागरूक बनाने का तथा देशवासियों को अधिक संवेदनशील बनाने का शक्तिशाली माध्यम भी है। लोकप्रिय होना किसी फिल्म के लिए अच्छी बात हो सकती है, लेकिन लोकहित में होना, विशेषकर युवा पीढ़ी के हित में होना और भी अच्छी बात है।
एक फिल्म को बनाने में बहुत से लोग कठिन परिश्रम करते हैं। मैं पुरस्कार विजेताओं से अनुरोध करूंगी कि वे अपनी टीम के प्रत्येक सदस्य को, सेट पर काम करने वाले सभी श्रमिक भाई-बहनों तक, मेरी बधाई पहुंचाएं। आपकी सफलता में उन सबका योगदान रहता है। उनके प्रति सम्मान और संवेदनशीलता का भाव रखना फिल्म उद्योग के work-culture का हिस्सा होना चाहिए।
आज के पुरस्कार विजेताओं में एक तरफ जाने-माने Star Actors और Film Makers हैं तो दूसरी तरफ Talented Youth हैं। मैं आप सभी को फिर से बधाई देती हूं। युवा प्रतिभाओं में संवेदनशीलता और जागरूकता देखकर भारत के सुदृढ़ भविष्य के प्रति आस्था मजबूत होती है।
देवियो और सज्जनो,
बच्चों पर, विशेषकर बेटियों पर केन्द्रित फिल्मों को प्रोत्साहित करने के लिए मैं इस पुरस्कार समारोह से जुड़े लोगों की सराहना करती हूं। आज छह बाल कलाकारों को पुरस्कार दिए गए हैं। मैं आप सभी प्रतिभाशाली बच्चों को ढेर सारा आशीर्वाद देती हूं।
‘गांधी ताता चेट्टु’ नामक तेलुगु फिल्म में एक छोटी सी बच्ची एक पेड़ को बचाने के लिए सत्याग्रह आंदोलन का नेतृत्व करती है। ऐसी कहानियां बच्चों में तथा पूरे समाज में अच्छे जीवन-मूल्यों तथा पर्यावरण के प्रति जागरूकता का संचार करती हैं।
इस वर्ष, सर्वश्रेष्ठ मराठी फिल्म का पुरस्कार एक प्रसिद्ध उपन्यास पर आधारित ‘श्यामची आई’ नामक फिल्म को दिया गया है। 81 वर्ष पहले, वर्ष 1954 में आयोजित First National Film Awards में उसी उपन्यास पर आधारित ‘श्यामची आई’ नाम की ही एक मराठी फिल्म को All India Best Feature Film का पुरस्कार प्रदान किया गया था। उस उपन्यास में एक मां अपने बच्चे को जीवन के आदर्श सिखाती है, अपनी करुणा और स्नेह से उसके व्यक्तित्व को बनाती है। ऐसी कहानी पर आधारित दो फिल्मों को आठ दशकों के अंतराल पर राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है। इससे यह स्पष्ट होता है कि पिछले 80 वर्षों में, फिल्म बनाने की technology और तरीके भले ही पूरी तरह बदल गए हों, लेकिन मां की ममता और मानवता के संदेश की ताकत उतनी ही प्रभावी है। परिवार से जुड़ी भावनाएं भारतीय फिल्मों में पूरी तरह जीवंत हैं।
फिल्म उद्योग से जुड़े सभी लोगों को यह प्रयास करना है कि विश्व स्तर पर भारतीय फिल्मों को और अधिक स्वीकृति मिले, उनकी लोकप्रियता बढ़े तथा मान्यता और सम्मान मिले। मुझे विश्वास है कि फिल्म उद्योग से जुड़े सजग और प्रतिभाशाली लोग इस दिशा में अवश्य आगे बढ़ेंगे। इसी विश्वास के साथ मैं अपनी वाणी को विराम देती हूं।
धन्यवाद!
जय हिन्द!
जय भारत!