भारत की राष्ट्रपति ने राष्ट्रपति भवन में दो दिवसीय साहित्यिक सम्मिलन: कितना बदल गया है साहित्य? का उद्घाटन किया
राष्ट्रपति भवन : 29.05.2025
भारत की राष्ट्रपति, श्रीमती द्रौपदी मुर्मु ने आज 29 मई, 2025 को राष्ट्रपति भवन सांस्कृतिक केंद्र में दो दिवसीय साहित्यिक सम्मिलन: कितना बदल गया है साहित्य? का उद्घाटन किया।
इस अवसर पर राष्ट्रपति ने कहा कि विद्यार्थी जीवन से ही उनके मन में साहित्य और साहित्यकारों के प्रति आदर और कृतज्ञता का भाव रहा है। समय के साथ साहित्य के प्रति विशेष सम्मान का यह भाव और अधिक गहरा होता गया है। उनकी यह इच्छा थी कि राष्ट्रपति भवन में साहित्यकारों का ज्यादा से ज्यादा आगमन हो। उन्होंने इस सम्मिलन के आयोजन के लिए संस्कृति मंत्रालय और साहित्य अकादमी की सराहना की।
राष्ट्रपति ने कहा कि हमारे विशाल देश में अनेक भाषाएं तथा साहित्यिक परंपराओं की असीम विविधता है। लेकिन इस विविधता में भारतीयता का स्पंदन महसूस होता है। भारतीयता का यही भाव हमारे देश के सामूहिक अवचेतन में भी रचा-बसा है। उन्होंने कहा कि वे देश की सभी भाषाओं और बोलियों को अपनी भाषा और बोली समझती हैं तथा सभी भाषाओं के साहित्य को अपना साहित्य मानती हैं।
राष्ट्रपति ने कहा कि परिवर्तनशील संदर्भों के बीच स्थाई मानवीय मूल्यों की स्थापना कालजयी साहित्य की पहचान होती है। जैसे-जैसे समाज और सामाजिक संस्थान बदले हैं, चुनौतियां और प्राथमिकताएं बदली हैं, वैसे-वैसे साहित्य में भी बदलाव देखे गए हैं। लेकिन साहित्य में कुछ ऐसा भी होता है जो सदियों बाद भी प्रासंगिक बना रहता है। स्नेह और करुणा के साहित्यिक संदर्भ बदलते रहते हैं किन्तु उनकी भाव-भूमि नहीं बदलती। साहित्य से प्रेरणा लेकर मनुष्य सपने देखता है और उन्हें साकार करता है।
राष्ट्रपति ने कहा कि आज का साहित्य उपदेशात्मक नहीं हो सकता। आज का साहित्य प्रवचन नहीं हो सकता। आज का साहित्य नीति-ग्रंथ नहीं हो सकता। आज का साहित्यकार सह-यात्री की तरह साथ-साथ चलता है, देखता है और दिखाता है; अनुभव करता है और दूसरों को अनुभाव कराता है। उन्होंने विश्वास व्यक्त किया कि इस साहित्यिक सम्मिलन में वक्ताओं और प्रतिभागियों के बीच रचनात्मक संवाद स्थापित होगा।
कल, सम्मिलन में ‘भारत का स्त्रीवादी साहित्य: नए आधार की तलाश में’, ‘साहित्य में परिवर्तन बनाम परिवर्तन का साहित्य’, तथा ‘वैश्विक परिप्रेक्ष्य में भारतीय साहित्य की नई दिशाएँ’ जैसे विषयों पर विचार-विमर्श किया जाएगा। सम्मिलन का समापन देवी अहिल्याबाई होल्कर की 300वीं जयंती के उपलक्ष्य में उनकी गाथा के साथ होगा।