भारत की राष्ट्रपति ने भारतीय मध्यस्थता संघ का शुभारंभ किया तथा प्रथम राष्ट्रीय मध्यस्थता सम्मेलन को संबोधित किया।

मध्यस्थता अधिनियम के तहत विवाद समाधान तंत्र को ग्रामीण क्षेत्रों तक प्रभावी रूप से पहुंचाया जाना चाहिए ताकि पंचायतें गांवों में विवादों को सुलझाने तथा मध्यस्थता करने के लिए कानूनी रूप से सशक्त हो  सकें: राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु।

राष्ट्रपति भवन : 03.05.2025

भारत की राष्ट्रपति श्रीमती द्रौपदी मुर्मु ने आज 3 मई, 2025 को नई दिल्ली में भारतीय मध्यस्थता संघ का शुभारंभ किया तथा प्रथम राष्ट्रीय मध्यस्थता सम्मेलन 2025 को संबोधित किया।

इस अवसर पर बोलते हुए राष्ट्रपति ने कहा कि मध्यस्थता अधिनियम, 2023 सभ्यतागत विरासत को सुदृढ़ करने की दिशा में उठाया गया पहला कदम है। अब हमें इसमें गति लानी है और इसे मजबूती से लागू करना है। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि मध्यस्थता अधिनियम के तहत विवाद समाधान तंत्र को ग्रामीण क्षेत्रों में प्रभावी रूप से पहुंचाया जाना चाहिए ताकि पंचायतें गांवों में विवादों को सुलझाने तथा मध्यस्थता करने के लिए कानूनी रूप से सशक्त हो सकें। उन्होंने कहा कि गांवों में सामाजिक सद्भाव होना, राष्ट्र को मजबूत बनाने की एक अनिवार्य शर्त है।

राष्ट्रपति ने कहा कि मध्यस्थता न्याय प्रदान करने का एक अनिवार्य हिस्सा है, जो भारत के संविधान का भी मूल है। मध्यस्थता से न केवल विचाराधीन विशिष्ट मामले में, बल्कि अन्य मामलों में भी बड़ी संख्या में न्यायालयों पर मुकदमों के बोझ को कम करके, न्याय प्रदान करने में तेजी लाई जा सकती है। यह समग्र न्यायिक प्रणाली में और अधिक कुशलता ला सकता है। इससे विकास के बंद प़ड़े रास्ते खुल सकते हैं। इससे व्यापार करने में सुविधा हो सकती है और जीवन आसान बन सकता है। इस दृष्टि से देखें तो मध्यस्थता, 2047 तक विकसित भारत के सपने को साकार करने में एक महत्वपूर्ण साधन सिद्ध हो सकती है।

राष्ट्रपति ने कहा कि भारत की न्यायिक तंत्र की एक लंबी और समृद्ध परंपरा है, जिसमें अदालत के बाहर समझौता करना एक आदर्श है, अपवाद नहीं। सौहार्दपूर्ण समाधान को बढ़ावा देने के लिए पंचायत संस्थान प्रसिद्ध है। पंचायत का कार्य न केवल विवाद को सुलझाना होता था, बल्कि पक्षों के बीच किसी भी तरह की कड़वाहट को दूर करना भी था। ऐसा करना हमारे लिए सामाजिक सद्भाव का एक स्तंभ रहा है। दुर्भाग्य से, औपनिवेशिक शासकों ने इस अनुकरणीय विरासत को नजरअंदाज करते हुए, देश पर एक विदेशी कानून प्रणाली थोपी। हालांकि, नई प्रणाली में मध्यस्थता और अदालत के बाहर समाधान करने का प्रावधान था, और वैकल्पिक तंत्र की पुरानी परंपरा जारी रखी गई थी, लेकिन इसके लिए कोई संस्थागत ढांचा नहीं बनाया गया। मध्यस्थता अधिनियम, 2023 से ऐसी कमियों को दूर किया गया है और इसमें अनेक प्रावधान किए गए हैं जो भारत में एक जीवंत और प्रभावी मध्यस्थता इकोसिस्टम की नींव रखेंगे।

राष्ट्रपति ने कहा कि पहला राष्ट्रीय मध्यस्थता सम्मेलन केवल एक औपचारिक आयोजन नहीं है; अब कार्रवाई का समय आ गय़ा है। यह विश्वास कायम रखते हुए, पेशेवर क्षमताओं का निर्माण करके और समाज के सभी वर्गों के नागरिक के लिए मध्यस्थता को सुलभ बनाकर, हम सब को देश में मध्यस्थता के भविष्य को सामूहिक रूप से आकार देने का आह्वान करता है। भारतीय मध्यस्थता संघ की स्थापना हमारी मध्यस्थता की विरासत को भविष्य तक ले जाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। इस अधिनियम में, मध्यस्थता को संस्थागत रूप से विवाद समाधान का एक पसंदीदा, सुव्यवस्थित और व्यापक रूप से सुलभ बनाने के लिए बढ़ावा दिया गया है – यह एक ऐसा दृष्टिकोण है जो आज की गतिशील और जटिल दुनिया के अनुसार समयोचित और बहुत आवश्यक भी है।

राष्ट्रपति ने कहा कि हमें इस प्रभावी विवाद और संघर्ष समाधान को केवल कानूनी आवश्यकता के रूप में नहीं देखना है बल्कि इसे सामाजिक अनिवार्यता के रूप में देखना है। मध्यस्थता से संवाद, समझ और सहयोग को बढ़ावा मिलता है। ये मूल्य एक सामंजस्यपूर्ण और प्रगतिशील राष्ट्र के निर्माण के लिए आवश्यक हैं। इससे संघर्ष रहित, समावेशी और सामंजस्यपूर्ण समाज का निर्माण होगा।

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