भारत की माननीय राष्ट्रपति श्रीमती द्रौपदी मुर्मु का आसूचना ब्यूरो शताब्दी एंडोमेंट व्याख्यानमाला के अवसर पर जन-केंद्रित राष्ट्रीय सुरक्षा: विकसित भारत के निर्माण में सामुदायिक भागीदारी विषय पर संबोधन

नई दिल्ली : 23.12.2025

डाउनलोड : भाषण भारत की माननीय राष्ट्रपति श्रीमती द्रौपदी मुर्मु का आसूचना ब्यूरो शताब्दी एंडोमेंट व्याख्यानमाला के अवसर पर जन-केंद्रित राष्ट्रीय सुरक्षा: विकसित भारत के निर्माण में सामुदायिक भागीदारी विषय पर संबोधन(हिन्दी, 141.47 किलोबाइट)

मुझे यह जानकर प्रसन्नता हो रही है कि आसूचना ब्यूरो शताब्दी एंडोमेंट व्याख्यानमाला एक अत्यंत सार्थक आयोजन बन गई है। मैं आसूचना ब्यूरो के निदेशक और उनके दल को इस व्याख्यान श्रृंखला को चलाते रहने के लिए बधाई देती हूं। मैं देश की आंतरिक सुरक्षा में आसूचना ब्यूरो के असाधारण योगदान के लिए गहरी प्रशंसा करती हूं। आसूचना ब्यूरो की टीम अत्यंत जटिल चुनौतियों के दौरान अथक परिश्रम करती है। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि इसकी उपलब्धियां प्रत्यक्ष रूप से दिखाई नहीं पड़ती हैं। दूसरे शब्दों में, आसूचना ब्यूरो अदृश्य नायकों की संस्था है।

आसूचना ब्यूरो की स्थापना 23 दिसंबर, 1887 को की गई थी। स्वाधीनता के बाद आंतरिक सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए संगठन की क्षमता और विशेषज्ञता का प्रभावी ढंग से पुनर्गठन किया गया। हमारे लिए यह गर्व की बात है कि स्वाधीनता के बाद आसूचना ब्यूरो भारत की जनता को सुरक्षा प्रदान करने और राष्ट्र की एकता और अखंडता बनाए रखने में उत्कृष्ट भूमिका निभा रहा है। मुझे यह जानकर अत्यंत संतोष होता है कि पिछले दशक में, हमारी सुरक्षा एजेंसियों, जैसे आसूचना ब्यूरो (आईबी), ने देश के भीतर अनेक खतरों को समाप्त किया है और राष्ट्रीय सुरक्षा को नुकसान पहुंचाने वाली ताकतों पर अपना प्रभुत्व प्रमाणित किया है। केंद्रीय गृह मंत्री श्री अमित शाह जी ने राष्ट्रीय सुरक्षा में लगे संस्थानों का नेतृत्व पूर्ण स्पष्टता और उद्देश्य के साथ किया है। मैं इस अवसर पर उनकी और उनकी सक्षम टीमों की उपलब्धियों की सराहना करती हूँ।

आंतरिक सुरक्षा ने हमारे लोगों और राष्ट्र को विकास के अनेक पथों पर अधिक ऊर्जा और गति के साथ आगे बढ़ने में सक्षम बनाया है। परिणामस्वरूप, भारत सबसे तेजी से बढ़ती प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं में शामिल हुआ है और निकट भविष्य में तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने की ओर बढ़ रहा है।

देवियो और सज्जनो,

इस व्याख्यान का विषय 'जन-केंद्रित राष्ट्रीय सुरक्षा: विकसित भारत के निर्माण में सामुदायिक भागीदारी' हमारे देश के लिए तात्कालिक और दीर्घकालिक दोनों दृष्टियों से महत्वपूर्ण है।

आईबी सहित सभी संबंधित संस्थानों को देशवासियों को जागरूक करना होगा कि राष्ट्रीय सुरक्षा प्रत्येक नागरिक का दायित्व है। जागरूक नागरिक राष्ट्रीय सुरक्षा में जुटी सरकारी एजेंसियों के कार्यों को मजबूती प्रदान कर सकते हैं और एक समाज के रूप में संगठित होकर हमारे नागरिक मिलकर राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए सरकार की पहलों का सहयोग कर सकते हैं।

हमारे संविधान में नागरिकों के मौलिक कर्तव्यों का उल्लेख है। इनमें से अनेक कर्तव्य हमारे राष्ट्रीय सुरक्षा के व्यापक आयामों से जुड़े हैं। छात्र, शिक्षक, मीडियाकर्मी, आवासीय कल्याण समिति, सिविल सोसायटी संगठन तथा अनेक अन्य समूह इन कर्तव्यों का प्रचार-प्रसार कर सकते हैं। मैं इनमें से कुछ का यहां उल्लेख करना चाहूंगी। हमारा संविधान कहता है कि:

“भारत के प्रत्येक नागरिक का यह कर्तव्य होगा कि वह संविधान का पालन करे और उसके आदर्शों और संस्थाओं, राष्ट्र ध्वज और राष्ट्र गान का आदर करे; भारत की प्रभुता, एकता और अखंडता की रक्षा करे और उसे अक्षुण्ण रखे;

देश की रक्षा करे और आह्वान किए जाने पर राष्ट्र की सेवा करे;

सार्वजनिक संपत्ति को सुरक्षित रखे और हिंसा से दूर रहे।”

नागरिकों द्वारा व्यक्तिगत और सामूहिक रूप से मौलिक कर्तव्यों का पालन करने से राष्ट्रीय सुरक्षा के विभिन्न आयामों को मजबूती मिलती है।

देवियो और सज्जनो,

सामुदायिक भागीदारी राष्ट्रीय सुरक्षा को मजबूत करती है। ऐसे अनेक उदाहरण हैं जब जागरूक नागरिकों की सूचना के आधार पर पेशेवर बलों ने सुरक्षा संकटों को समाप्त किया है।

राष्ट्रीय सुरक्षा के विस्तारित मायने और कार्यनीति में जनता केंद्र में रहती है। लोगों को अपने आसपास होने वाली घटनाओं का मूक दर्शक बनकर नहीं रहना चाहिए। उन्हें अपने परिवेश और अन्य क्षेत्रों की सुरक्षा करने में सचेत रूप से और सक्रियता से भागीदारी करनी चाहिए। जन भागीदारी जन-केंद्रित सुरक्षा की आधारशिला है।

स्वतंत्रता-पूर्व काल से चली आ रही परंपरागत सोच के कारण, कुछ लोग सरकारी कर्मचारियों और विशेष रूप से पुलिस बलों के प्रति दूरी का भाव महसूस कर सकते हैं। विकसित समाजों और देशों में जनता आम तौर पर पुलिसकर्मियों को एक मित्र के रूप में देखती है जिन पर मदद के समय भरोसा किया जा सकता है।

हमारी नागरिक पुलिस और आंतरिक सुरक्षा एजेंसियों को जनसेवा की भावना से कार्य करना होगा। सेवा की ऐसी भावना से जनता में विश्वास पैदा होगा। यह विश्वास एक ऐसी जन-केंद्रित राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति विकसित करने के लिए आवश्यक शर्त है, जिसमें सामुदायिक भागीदारी महत्वपूर्ण होती है।

देवियो और सज्जनो,

भारत बहुआयामी सुरक्षा चुनौतियों और खतरों का सामना कर रहा है। सीमावर्ती क्षेत्रों में तनाव, आतंकवाद और उग्रवाद, विद्रोह और सांप्रदायिक कट्टरता ऐसे विषय हैं जो पारंपरिक रूप से सुरक्षा के लिए चिंता के क्षेत्र रहे हैं। हाल के वर्षों में, साइबर अपराध एक महत्वपूर्ण सुरक्षा चुनौती के रूप में उभरे हैं।

अंतर्राष्ट्रीय घटनाक्रमों का हमारी आंतरिक सुरक्षा की स्थिति पर भी प्रभाव होता है। विश्व भू-राजनीतिक तनाव, आर्थिक अस्थिरता और व्यापार में व्यवधान का सामना कर रहा है। इन घटनाओं का आंतरिक सुरक्षा पर भी प्रभाव पड़ता है।

हमारी सुरक्षा संबंधी अनेक चुनौतियाँ हमारे राष्ट्रीय संदर्भ में विशेष हैं। ऐसी स्थितियों में हमें ऐसे समाधान खोजने चाहिए जिनसे हमारी विशेष चिंताएं दूर हो सकें। ऐसी स्थितियों के समाधान में सामुदायिक भागीदारी महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है।

देश के किसी भी हिस्से में सुरक्षा की कमी से पड़ने वाला आर्थिक प्रभाव, प्रभावित क्षेत्र से कहीं अधिक व्यापक होता है। सुरक्षा आर्थिक निवेश और विकास का एक प्रमुख घटक है। हम कह सकते हैं कि 'समृद्ध भारत' के निर्माण के लिए 'सुरक्षित भारत' का निर्माण करना आवश्यक है।

देवियो और सज्जनो,

मैं सुरक्षा एजेंसियों को 31 मार्च, 2026 तक वामपंथी उग्रवाद को समाप्त करने के उनके दृढ़ संकल्प के लिए बधाई देती हूँ। पहले, वामपंथी उग्रवाद को "सबसे बड़ी आंतरिक सुरक्षा चुनौती" माना जाता था। अब वामपंथी उग्रवाद पूरी तरह से समाप्त होने वाला है। वर्ष 2014 में, 126 जिले नक्सल प्रभावित थे। अब प्रभावित जिलो की संख्या केवल ग्यारह बची है। आज, केवल तीन जिले ही सबसे अधिक प्रभावित जिलों की श्रेणी में बचे हैं।

वामपंथी उग्रवाद के लगभग उन्मूलन के पीछे आंतरिक सुरक्षा के क्षेत्र में कार्यरत बलों और एजेंसियों द्वारा की गई कड़ी कार्यवाही एक प्रमुख कारण है। हालांकि, विभिन्न पहलों के माध्यम से समुदायों का विश्वास जीतने के लिए एक समग्र दृष्टिकोण अपनाया गया है। आदिवासी और दूरदराज के क्षेत्रों में सामाजिक-आर्थिक समावेशन को बढ़ावा दिया गया जो वामपंथी अतिवादियों और विद्रोही समूहों द्वारा किए जाने वाले लोगों के शोषण के समक्ष प्रभावी सिद्ध हुआ है।

आत्मसमर्पण करने वालों के पुनर्वास के लिए प्रोत्साहन दिए जाने से उन्हें मुख्यधारा में लौटने के लिए प्रेरित किया है।

प्रभावित जिलों में गहन बैंकिंग सेवाएं प्रदान करके वित्तीय समावेशन से लोगों में विश्वास जागा है।

प्रभावित क्षेत्रों में अनेक एकलव्य मॉडल आवासीय विद्यालय प्रारंभ किए गए हैं। इस शैक्षिक सुविधा ने बच्चों और अभिभावकों में नई आशा जगाई है।

अनेक प्रभावित जिलों में कौशल विकास पहलों ने युवाओं को आकर्षित किया है। इन सकारात्मक पहलों के कारण, युवा आबादी की नक्सली गतिविधियों में भर्ती होने में रुचि नहीं रही है।

सरकार, प्रभावित क्षेत्रों में आदिवासी समुदायों के विभिन्न वर्गों, विशेषकर जनजातीय महिलाओं को नियोजित करने के लिए विशेष पहल कर रही है।

सामुदायिक नेतृत्व वाले सामाजिक, सांस्कृतिक और शैक्षिक कार्यक्रमों को प्रोत्साहन दिया गया है।

सरकारी योजनाओं को लागू करके रोजगार के अवसर सृजित किए गए हैं।

हाल ही में आयोजित किए गए बस्तर ओलंपिक 2025 ने प्रभावित क्षेत्रों में आए सकारात्मक परिवर्तन को साबित किया है। इन खेलों में लगभग चार लाख खिलाड़ियों ने भाग लिया है। इनमें हमारी बेटियों की संख्या बेटों से अधिक थी। इन प्रतिभागियों में सात सौ से अधिक वे युवा शामिल थे जिन्होंने अब नक्सलवाद का मार्ग छोड़ दिया है।

हम यह कह सकते हैं कि बस्तर में 'लाल सलाम' के नारे के स्थान पर अब 'भारत माता की जय' देशभक्ति नारा बोला जाने लगा है।

सामुदायिक भागीदारी के ऐसे उपायों से न केवल वामपंथी उग्रवाद को खत्म करने में मदद मिलेगी बल्कि उस राह पर फिर जाएंगे भी नहीं।

देवियो और सज्जनो,

सीमावर्ती क्षेत्रों में राष्ट्रीय सुरक्षा का विषय और भी चुनौतीपूर्ण है। हमने सीमा सुरक्षा इंफ्रास्ट्रक्चर को काफी मजबूत बनाया है। लेकिन, सीमावर्ती क्षेत्रों में रहने वाले हमारे नागरिक जमीनी स्तर की जानकारी हमें दे सकते हैं। वे ही संदिग्ध गतिविधियों, कट्टरपंथी प्रयासों या सामाजिक मतभेदों को सबसे पहले समझ पाते हैं। सरकार ने अनेक ऐसी योजनाएं शुरू की हैं जो सीमावर्ती क्षेत्रों में रहने वाले हमारे लोगों के समग्र विकास पर केंद्रित हैं। भारत में दुनिया की सबसे बड़ी युवा आबादी है। कट्टरपंथी संगठन, समाज में फूट डालने के लिए, अधिकतर युवाओं को ही निशाना बनाते हैं। मुझे बताया गया है कि हमारी सुरक्षा एजेंसियां ​​सोशल मीडिया के प्रभाव सहित, युवाओं से जुड़ी इस समस्या का बहुत प्रभावी ढंग से निराकरण कर रही हैं। युवाओं की प्रतिभा का उपयोग करने के लिए अनेक प्रयास किए जा रहे हैं। युवाओं को शिक्षा, कौशल, खेलकूद तथा स्व-रोजगार से जोड़ने के लिए अनेक कार्यक्रम चलाये जा रहे हैं।

सोशल मीडिया ने सूचना और संचार की दुनिया को बदल दिया है। सोशल मीडिया में रचना और विनाश दोनों की क्षमता है। लोगों को दुष्प्रचार से बचाना एक बहुत ही चुनौतीपूर्ण काम है। यह कार्य बहुत प्रभावी ढंग से निरंतर किया जाना चाहिए। सोशल मीडिया का सक्रिय उपयोग करने वाले ऐसे लोगों का समुदाय बनाने की आवश्यकता है जो राष्ट्र-हित में, तथ्यों पर आधारित विवरण प्रस्तुत करते रहें।

मुझे यह जानकर प्रसन्नता हुई है कि हमारे देश ने जन-भागीदारी के माध्यम से नशीली दवाओं के खतरे के विरुद्ध एक प्रभावी अभियान शुरू किया है। कट्टरपंथ की समस्या का सामना करने के लिए भी, जन-भागीदारी के माध्यम से, इसी तरह के प्रयास किए जाने चाहिए। स्थानीय समुदाय के नेता, आध्यात्मिक संगठन, civil society समूह तथा परिवार के लोग, गरीबी या सामाजिक बहिष्कार जैसे अलगाव के मूल कारणों को शीघ्रता से समझ सकते हैं। वे अपने समुदायों के लोगों की गतिविधियों के बारे में सतर्क रह सकते हैं तथा उनके बारे में सूचनाएं दे सकते हैं।

राष्ट्रीय सुरक्षा के सम्मुख सबसे जटिल समस्याएं non-traditional और digital हैं। ऐसी अधिकांश समस्याओं की उत्पत्ति अत्याधुनिक तकनीकों के माध्यम से होती है। इस संदर्भ में तकनीकी रूप से सक्षम समुदायों को विकसित करने की आवश्यकता है। डिजिटल फ्रॉड की बढ़ती समस्या के लिए घरों, संस्थानों और समुदायों के स्तर पर निगरानी की आवश्यकता है।

डिजिटल प्लेटफॉर्म, नागरिकों को फिशिंग, डिजिटल फ्रॉड और online abuse की रिपोर्ट करने में सक्षम बना सकते हैं। वे संबंधित एजेंसियों को real-time data प्रदान कर सकते हैं। ऐसे real-time data का विश्लेषण करके predictive policing models विकसित किए जा सकते हैं। सतर्क और सक्षम नागरिकों के समुदाय साइबर अपराधों का शिकार नहीं बनेंगे। बल्कि वे ऐसे अपराधों के विरुद्ध firewall की भूमिका निभा सकेंगे। Neighbourhood Watch Groups तथा citizen-patrols के माध्यम से सूचना प्राप्त करने के लिए बीट पुलिस स्तर पर “सुरक्षा मित्र” जैसे प्रयास किए जा सकते हैं।

देवियो और सज्जनो,

सीमित प्राकृतिक संसाधनों पर जलवायु परिवर्तन के कुप्रभाव से लोगों में आपसी संघर्ष की संभावना बढ़ती है। यह भी सुरक्षा संबंधी चिंता का कारण है। अतः पर्यावरण संरक्षण के लिए जन-भागीदारी को बढ़ावा देने की आवश्यकता है। इससे संसाधनों का स्थाई प्रबंधन संभव हो सकेगा तथा संसाधनों से जुड़े संघर्षों और पलायन की समस्या का समाधान किया जा सकेगा।

जनजातीय समुदायों के पास पर्यावरण संरक्षण के विषय में अमूल्य पारंपरिक ज्ञान- प्रणाली विद्यमान है। जनजातीय समुदायों को सशक्त बनाने से, सामाजिक स्थिरता को शक्ति मिलेगी तथा उनके पारंपरिक ज्ञान का सदुपयोग पर्यावरण संरक्षण एवं climate action के लिए किया जा सकेगा। विकसित भारत के विज़न को साकार करने की दिशा में सरकार के प्रयासों के साथ-साथ civil society, आध्यात्मिक संस्थानों और NGOs को भी योगदान देना होगा। इसमें जनभागीदारी-युक्त सुरक्षा एवं विकास के प्रयासों की महत्वपूर्ण भूमिका रहेगी।

नागरिकों के कल्याण तथा जन-भागीदारी को अपनी रणनीति के केंद्र में रखकर, हम अपने करोड़ों देशवासियों को intelligence और security के प्रभावी स्रोत के रूप में तैयार कर सकते हैं। जन-भागीदारी द्वारा संचालित यह परिवर्तन 21वीं सदी की जटिल बहु- क्षेत्रीय सुरक्षा समस्याओं का समाधान करने में सहायक होगा। हमारी परंपरा वसुधैव कुटुम्बकम् की भावना पर आधारित है। जिस भावना से पूरे विश्व को एक ही परिवार माना जाता है, उसके अनुसार अपने देश के नागरिक तो हमारे हृदय का हिस्सा हैं। हार्दिक आत्मीयता की इसी भावना के साथ जन-भागीदारी को राष्ट्रीय सुरक्षा के प्रमुख स्तम्भ के रूप में स्थापित करना चाहिए।

मुझे विश्वास है कि जन-भागीदारी के माध्यम से हम सब सतर्क भारत, शांतिपूर्ण भारत, सुरक्षित भारत और समृद्ध भारत के निर्माण की ओर तेजी से आगे बढ़ेंगे।

धन्यवाद!
जय हिंद!
जय भारत!

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